दिमाग खाना मुहावरे का अर्थ और वाक्य व एक प्रसिद्ध कहानी

दिमाग खाना मुहावरे का अर्थ है dimag khana muhavare ka arth hai – परेशान करना या बेकार की बाते करना ।

दोस्तो मनुष्य का दिमाग जो होता है वह बहुत ही ताक्तवर होता है जिसके कारण से उसने अनेक ऐसी वस्तुओ को बनाया जो सोचने तक नामुमकिन सी लगती है । जैसे छोटे से डिवाईस में ‌‌‌दुनिया भर की जानकार रख दी है । और इस तरह के शक्तिशाली दिमाग को हमेशा ही कठिन कार्य देना चाहिए ताकी यह और अधिक शक्तिशाली बन सके ।

मगर जब कोई इसके सामने बेकार की बाते करने लग जाता है जो दिमाग को पंसद नही आती है या यह कह सकते है की जिसका दिमाग है उसे पसंद नही होती है तो इस तरह की बाते ‌‌‌बेकार बाते बन जाती है । और इस तरह की बेकार बातो को सुनते रहने के कारण से व्यक्ति परेशान हो जाता है और ‌‌‌इसे ही दिमाग खाना कहा जाता है ।

‌‌‌दिमाग खाना मुहावरे का वाक्य में प्रयोग

  • सरला जब भी घर पर आती है दिमाग खाने लग जाती है ।
  • कंचन की बाते सुन कर मुझे तो ऐसा लगता है की मानो वह मेरा दिमाग खा रही है ।
  • जब बच्चे शोर मचाने लगे तो अध्यापिका ने
    कहा की शोर मचा कर क्यो मेरा दिमाग खा रहे हो ।
  • मेरा नोकर होने के बाद भी मेरा ही दिमाग ‌‌‌खा रहा है यह अच्छा थोडे है  ।
  • राहुल की पत्नी हर महिने सॉपिग करने की जीद कर कर राहुल का दिमाग खाती रहती है ।
  • जब राहुल की पत्नी बार बार पैसे मागने लगी तो उसने कहा की इस बार पैसे जरा कम है तुम क्यो बार बार दिमाग खाने पर तुली हो ।
  • मैं जब भी हजारी के घर जाता हूं वह मेरा दिमाग खाने बैठ जाता है ।

‌‌‌दिमाग खाना मुहावरे पर कहानी (‌‌‌मालकिन और नोकरानी)

दोस्तो एक समय की बात है किसी नगर में एक धनवान सेठ रहा करता था जिसके घर में उसकी पत्नी और बडा नौजवान बेटा रहा करता था । सेठ के बेटे का नाम मनोज था । सेठ के पास बहुत ही बहुत अधिक धन था जिसके कारण से वह अपने बेटे को अच्छी शिक्षा देन में सफल रहा और इसी के चलते सेठ का बैटा ‌‌‌एक स्कूल में ‌‌‌बाबू की नौकरी करने लगा था।

इस नौकरी में थोडा सेठ का भी सहयोग रहा था क्योकी नोकरी मिलना तो बहुत ही ‌‌‌मुश्किल है । सेठ का बेटा जब नोकरी लग गया और ‌‌‌उसके पास अधिक धन होने के कारण से सेठ के बेटे के लिए काफी अधिक रिस्ते आने लगे थे । मगर सेठ ने अपने बेटे की शादी अपने प्रम मित्र रामानन्द की की बेटी से करने की सोच रही थी जिसके कारण से उसने अपने मित्र से इस बारे में पूछा ।

भला इतना अच्छा परिवार होने पर और धन की कमी न होने पर कोई मना कर सका जो रामानन्द मना कर पता । और रामानन्द ने विवाह करने की बात मान ली । जिसके कारण से सेठ और रामानन्द ‌‌‌ने अपने बेटे व बेटी का विवाह करा ‌‌‌दिया था ।

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रामानन्द की बेट भी भी पढी लिखी थी जिसके कारण से एक ही वर्ष में उसे भी एक अच्छी सी नोकरी मिल गई थी। इस तरह से दोनो पति पत्नी नोकरी करने गले थे । मगर अभी दोनो की ड्यूटी अलग अलग थी । जिसके कारण से सेठ ने इसमें अपना योगदान दिया और दोनो की ड्यूटी एक ही ‌‌‌शहर में करा दी ।

‌‌‌मगर अब भी रोजाना शहर से आना जाना नही हो पाता था जिसके कारण सेठ ने अपने बेटे व बहु को शहर में रहने के लिए भेज दिया। दोनो वहां पर चले गए और वहां पर रहने लगे थे । मगर इस तरह से काम करने के कारण से उन्हे घर का काम करने में काफी अधिक परेशानियो का सामना करना पडा था।

जिसके कारण से सेठ के बेटे ने ‌‌‌यानि मनोज ने अपनी पत्नी से कहा की एक नौकरानी रख लेते है जो काम कर दिया करेगी । यह बात मनोज की पत्नी को अच्छी लगी जिसके कारण से अगले ही दिन अपने पडोस के लोगो को नोकरानी ढूंढने के लिए साहयता मागी ।

तब उन्होने कहा की आप तो इस शहर में नए आए हो आपको मालूम नही है की यहां पर नौकरानी मिलना आसान ‌‌‌नही है बल्की काफी अधिक मुश्किल है । ‌‌‌तब मनोज की पत्नी ने अपनी पडोसन से कहा की जरा हो सके तो ढूंढ देना नोकरी के साथ साथ घर काम नही कर पाते है ।

तब उनके पडोसी ने कहा की ठिक है हम अपनी नोकरानी से इस बारे में बात करते है । इस तरह से नोकरानी से इस बारे में बात करने पर उसने कहा की मैं उनके लिए नौकरानी तो लेकर आ सकती हूं मगर वह काम कैसा ‌‌‌करेगी यह उन्ही को देखना होगा साथ ही एक बार नोकरी काम छोड कर चली गई तो फिर मिलना आसान भी ‌‌‌नही होगा ।

जब इस बारे में मनोज की पत्नी को उसकी पडोसी ने कहा तो उसने कहा की ठिक है नोकरानी को घर भेज देना । इस तरह से फिर मनोज और उसकी पत्नी नोकरानी के आने का इंतजार कर रहे थे । दो दिनो के बाद में उनके घर ‌‌‌एक औरत आई जो की मनोज और उसकी पत्नी से कहने लगे की ‌‌‌आपको एक नोकरानी चाहिए थी न वह मैं हूं ।

इसके बाद में मनोज ने घर का काम करने के लिए नौकरानी कितने पैसे लगे यह सब बात कर ली और उसे काम पर रख लिया था । यहां तक सब ठिक ठाक चल रहा था । और इस बात को दो दिन बित गए मगर अब मनोज और उसकी पत्नी ड्यूटी ‌‌‌से घर आते तो नोकरानी उनसे कहती की साहब अपने जूत चपल बहार निकाल दिया करो इस तरह से बार बार मुझसे झाडू नही लगाई जाती है ।

एक दिन तो ठिक था मगर दूसरे दिन फिर नोकरानी ने मनोज को टोक दिया और कहा की अपना समान सही जगहो पर रखो । मगर मनोज ने सोचा की यह तो सही बात है जिसके कारण से मनोज नोकरानी को ‌‌‌अपने घर का सदस्य समझा और उसे भी हर त्योहार पर गिफ्ट देने लगा था ।

इस तरह से नोकरानी को घर में आए हुए एक ही महिना हुआ था की अगल ही महिने नोकरानी मनोज और उसी पत्नी को राय बाजी देने लगी और कोनसा काम करना है और कोनसा नही यह सब बताने लगी थी । अगर कभी रोटिया बनाते हुए जल जाती और मानोज या उसकी ‌‌‌पत्नी नोकरानी को कुछ कह देते तो नोकरानी अनाप सनाप बकने लग जाती थीं जिसके कारण से मनोज परेशान हो गया था । ‌‌‌

यहां तक की जब भी मनोज और उसकी पत्नी काम से घर आते तो नोकरानी पच पच करने लग जाती थी यानि बेकार की बाते करने लग जाती थी । जिसके कारण से दोनो बहुत ही अधिक परेशान होने लगे थे ।  इसी तरह से एक दिन की बात है मनोज और उसकी पत्नी काम से घर आए और दोनो उस दिन बहुत ही थक गए थे मगर जैसे ही घर में प्रवेश ‌‌‌किया नोकरानी बेकार की बाते लेकर बैठ गई ।

जिसे सुन कर पहले मनोज ने कहा की जरा चुप रहो आज बहुत ही पेरशान है आज माथा फट रहा है ।मगर फिर भी नोकरानी चुप नही हुई तो नोकरानी को मनोज की पत्नी ने भी यही बात कही । मगर नौकरानी आस पास के लोगो की बुराईया करनी शुरू कर दी और वह खुब मजा ले रही थी ।

इधर ‌‌‌मनोज और उसकी पत्नी की हालत बहुत ही खराब थी । तब मनोज उस पर भडक गया और कहने लगा की मैं तुम्हारा मालिक हुं जब काम से घर आता हूं तो कम से काम पानी के लिए पूछना चाहिए । इतने में मनोज की पत्नी बोल पडी और कहने लगी की कब से हम दोनो का दिमाग खा रही हो जरा चुप रहो ।

इस तरह से बात सुन कर नोकरानी चुप ‌‌‌हो गई । इस बात को दस ही मिनट हुए थे की नोकरानी अपनी आदत के चलते हुए फिर से ऐसा ही करने लगी थी । तब मनोज की पत्नी ने फिर से उसे डाटा और कहा की जरा चुप रह जाओ क्यो मेरा दिमाग खाने पर तुली हो । ‌‌‌

तभी मनोज ने आवाज लगाई की जरा चाय लेकर आना । मगर नोकरानी बिना चाय के चली गई और मनोज के पास बैठ कर फिर से गप लगाने लगी थी मगर मनोज गप लगाना नही चाहता था जिसके कारण से उसने फिर से डाट दिया और उसे कहा की कब से देख रहा हूं की हमारा दिमाग खा रही हो और इतना कहते हुए उसे काम से निकाल दिया । ‌‌‌

जब इस बात के बारे में आस पास के पडोसियो को पता चला तो उन्होने कहा की इस शहर में नोकरानी का मिलना बहुत ही मुश्किल है और आपको मिली थी मगर आपने उसे काम से वापस निकाल दिया। तब मनोज और उसकी पत्नी दोनो एक ही बात कहते की इस तरह की नोकरानी से अच्छा है की हम स्वयं ही अपने घर का काम कर ले । इसके ‌‌‌बादमें यही हुआ और दोनो फिर अपने घर का काम स्वयं ही करते थे। मगर इससे फायदा यह हुआ की उन्हे बेवजह परेशान नही होना पडता था।

इस तरह से नोकरानी मनोज और उसकी पत्नी का दिमाग खाने लगी थी । और फिर उसे नोकरी से हाथ धोना पडा।

इस तरह से आप इस कहानी से मुहावरे के बारे में समझे होगे ।

‌‌‌दिमाग खाना मुहावरे पर निबंध

साथियो मनुष्य का जब भी पेट खाली होता है वह उसे भरने के लिए कुछ न कुछ खाता है जिसमें अधिक खाना खाने की बात होती है। मगर यहां पर ‌‌‌दिमाग खाना कहा जाता है भला कोई अपना या दूसरे का दिमाग ‌‌‌निकालकर कैसे खा सकता है ।

यहां पर इस मुहावारे का अर्थ यह नही होता है की लोग ‌‌‌दुसरो का दिमाग सिर से निकालते है और फिर उसे भौजन समझ कर खाने लग जाते है । बल्की जब कोई व्यक्ति बेवजह किसी को परेशान करता है तो इसका सिधा असर उसी दिमाग ‌‌‌पर होता है और इसके बादमें ऐसा लगता है की दिमाग को कोई खा रहा है ।

क्योकी उसके दिमाग में दर्द महसुस होने लग जाता है । ‌‌‌जिस तरह से मनोज और उसकी पत्नी को बार बार नोकरानी परेशान करती जा रही थी जिसके कारण से वे बहुत ही अधिक परेशान हो गए थे । क्योकी नोकरानी ऐसी बाते कर रही थी जो दोनो को पसंद नही थी और न ही वे किसी तरह की बात करना चाहते थे । ‌‌‌

इस तरह से फिर दोनो ने ही नोकरानी को काम से निकाला था । और वहां पर दिमाग खाना कहा जाता है । जिसका अर्थ यह हुआ की जब भी कोई व्यक्ति किसी के साथ ऐसी बाते करता है जो बेमतलब की होती है तो वे परेशान हो जाते है और इस तरह से परेशान होने को ही दिमाग खाना कहा जाता है ।

‌‌‌साथियो इस पूरे लेख से अब तक इतना समझ में आ गया होगा की दिमाग खाना मुहावरे का अर्थ परेशान करना होता है ।

अगर लेख पंसद आया और किसी प्रकार का प्रशन है तो कमेंट में पूछ सकते है ।

क्या आपका भी अक्सर कोई दिमाग खाता ‌‌‌रहता है बताना न भूले ।

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