बेपेंदी का लोटा मुहावरे का अर्थ bin pendi ka lota hona muhavare ka arth – सिद्धांतहीन व्यक्ति या अस्थिर चित्त व्यक्ति ।
दोस्तो लोटा आपके घर में जरूर होगा । और ज्यादातर लोटा ऐसे होते है जिनके निचे पेंदी होती है जिसके कारण से वे आसानी से किसी स्थान पर स्थिर रह सकते है ।
मगर जिस लोटा के पेंदी न होती है उन्हे बेपेंदी या बिनपेंदी का लोटा कहते है और इस तरह का जो लोटा होता है वह किसी स्थान पर स्थिर नही रह सकता है बल्की टेढ़ा हो जाता है ।
उसी तरह से जिस व्यक्ति का कोई सिद्धांत नही होता है उसे सिद्धांतहिन व्यक्ति कहा जाता है । इसके जो व्यक्ति किसी भी अपनी बात पर स्थिर न रहता है , उसका विचार बार बार बदलता रहता है तो इस तरह के व्यक्ति को अस्थिर चित्त व्यक्ति कहा जाता है और यह बिल्कुल बिना पेंदी के लोटे की तरह ही होता है ।
और इसी कारण से बिना पेंदी या बेपेंदी का लोटा होना मुहावरे का सही अर्थ सिद्धांतहीन व्यक्ति या अस्थिर चित्त व्यक्ति होता है ।

बेपेंदी का लोटा होना मुहावरे का वाक्य में प्रयोग || bin pendi ka lota hona use of idioms in sentences in Hindi
1. तुम क्या बेपेंदी का लोटा हो जो बार बार अपनी ही बात से मुकर जाते हो ।
2. सुरज की बात पर तुम भरोषा कर रहे हो वह तो बेपेंदी का लोटा है ।
3. वह तो पूरा बिना पेंदी का लोटा है उसकी बातो पर भरोषा मत कर लेना ।
4. चुनाव में जीत हासिल करने के लिए सरपंच साहब बार बार पार्टी बदलने लगे तो लोगो ने भी कह दिया की सरपंच तो बेपेंदी का लोटा है ।
5. अरे नेताजी तो बिना पेंदी का लोटा निकले, पैसो की लालच में बार बार अपनी पार्टी तक को बदल रहे है ।
6. वर्तमान का समय ऐसा आ गया है की समय आने पर अपने भी बिना पेंदी का लोटा बन जाते है ।
7. नोकरी लगने के लिए महेश बार बार अपना मत बदल कर बेपेंदी का लोटा बन कर रह गया ।
8. नेताजी सच कहे तो आपके जैसा बेपेंदी का लोटा आज तक हमने नही देखा ।
बेपेंदी का लोटा होना मुहावरे पर कहानी || bin pendi ka lota hona story on idiom in Hindi
दोस्तो एक बार की बात है हमारे आस पास ही एक सुरज नाम का लड़का रहा करता था जो की पढने में भी काफी होशियार था और वह हमेशा स्कूल में पढने वाले लड़को मे से गिना जाता था । वही पर जो दूसरे लड़के थे वे पढना कम ही चाहते थे इस कारण से केवल समय ही बिताते थे ।
मगर सुरज जो था वह पढने में मजा लेने वाला था । सुरज के घर में उसके माता पिता के अलावा उसकी एक बहन और एक बड़ा भाई रहा करता था । बड़ा भाई जो था वह पढा लिखा नही था क्योकी उसके जो पिता थे यानि सुरज के पिता जो थे वे हमेशा से बिमार रहते थे
इस कारण से सुरज के बड़े भाई को ही अपना घर चलाने के लिए काम करना पड़ जाता था । और यह सब देख कर सुजर भी चाहता की अगर जीवन में सफल होना है तो नोकरी करना ही है । वही पर सुरज का भाई भी उसे ज्ञान देता था की भाई अगर जीवन में सफल होना है
तो इसके लिए नोकरी करना जरूरी है क्योकी बिना नोकरी के जीवन में सफल होना इतना आसान नही है और यह सुन कर कर सुरज पढने में काफी समय देता था । मगर जैसे जैसे समय बितता गया वह पढना तो नही छोड़ा मगर उसे समझ में नही आ रहा था की क्या किया जाए ताकी जीवन में सफल हो ।
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तब सुरज के एक मित्र ने कहा की मैं तो पुलिस विभाग में नोकरी करना चाहता हूं इस कारण से तैयारी कर राह हूं और अपने मित्र से सुरज ने यह बात सुनी तो सुरज ने भी कह दिया की मैं भी तैयारी कर लेता हूं ताकी मेरा भी नम्बर आ जाए ।
और इस तरहसे फिर सुरज और उसका मित्र दोनो एक साथ तैयारी करने लगे थे । मगर समय के साथ साथ सुरज ने अपने मित्र का साथ छोड़ दिया था । तभी एक दिन सुरज को पता चला की उसका एक मित्र तो कॉलेज कर रहा है और वह बीएड कर कर टीचर बनने वाला है और यह सुन कर सुरज ने भी कॉलेज जॉइन कर ली और पढाई करने लगा ।
अब सुरज जो पुलिस विभाग में नोकरी लगने के लिए तैयारी कर रहा था उसे छोड़ दिया था और कॉलेज करने लगा था । मगर जब तक कॉलेज की डीग्री पूरी हुई तो सुरज को पता चला की अध्यापक बनना आसान नही है क्योकी आज तक उसके गाव में जिन्होने भी अध्यापक बनने के लिए तैयारी की थी वे नोकरी नही लगे है।

और तभी सुरज को पता चला की उसका मित्र जो है वह बैंक में नोकरी लग गया है और यह जानने के बाद में सुरज को लगा की बैंक में नोकरी मिलना तो आसान है तभी उसका मित्र नोकरी लग गया ।
क्योकी वह एक ऐसा मित्रथा जो की पढने में हमेशा सुरज से पीछे रहा था और इसी कारण से सुरज को लगा की बैंक में नोकरी आसानी से मिल जाती है इस कारण से सुरज जो था उसने फिर बैंक की तैयारी करनी शुरू कर दी ।
मगर एक वर्ष तक तैयारी करने के बाद भी जब नोकरी नही लगी तो सुरज को समझ में नही आया की क्या किया जाए ताकी आसानी से और जल्दी नोकरी मिल जाए ।
अब सुरज को पता चला की उसका जो मित्र है वह पुलिस विभाग में नोकरी लगने की तैयारी कर रहा था वह जॉब लग गया है खबर सुन कर ही सुरज को अहसास हुआ की अगर वह भी उसी समय से तैयारी जारी रखता तो आज उसे भी जॉब मिल जाती ।
मगर अब सुरज पुलिस विभाग के लिए फिर से तैयारी करने के लिए जाने लगा तो सुरज के भाई को पता चल गया की सुरज तो बेपेंदी का लोटा हो चुका है जो की दूसरो को देख कर इधर उधर चलता रहता है ।
इस कारण से सुरज के भाई ने उसे समझाया की किसी एक जॉब को अपने जीवन का लक्ष्य बनाओ और उस पर कार्य करो क्योकी दूसरो को देख की बिना पेदी का लोटा होना सही नही है । और अपने भाई के समझाने के कारण से सुरज ने फिर अपने जीवन का लक्ष्य बनाया और उस पर कार्य करना शुरू किया ।
एक वर्ष के बाद में उसे बैंक में नोकरी मिल गई ओर वह आज अच्छा जीवन बिता रहा है ।
तो इस तरह से दूसरो को देख कर बेपेंदी का लोटा होना सही नही है । वैसे आप कहानी से इस मुहावरे के अर्थ को समझ सकते है अगर कुछ पूछना है तो कमेंट कर देना ।
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